Saturday, 24 December 2016

Merry Christmas

Merry Christmas: खुशी और उत्साह का प्रतीक है क्रिसमस का दिन



खुशी और उत्साह का प्रतीक क्रिसमस ईसाई समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार है। ईसाई समुदाय द्वारा यह त्योहार 25 दिसंबर को यीशु मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। क्रिसमस से जुड़ी अनेक परंपराएं व रोचक बाते हैं, जैसे क्रिसमस ट्री सजाना, संता का गिफ्ट बांटना व कार्ड भेजना। ये परंपराएं क्यों है व कब से इनकी शुरुआत हुई आइए जानते हैं इन परंपराओं के बारे में खास बातें
मान्यता है कि सांता का घर उत्तरी ध्रुव पर है और वे उड़ने वाले रेनडियर्स की गाड़ी पर चलते हैं। सांता का यह आधुनिक रूप 19 वीं सदी से अस्तित्व में आया। उसके पहले ये ऐसे नहीं थे। आज से डेढ़ हजार साल पहले जन्मे संत निकोलस को असली सांता और सांता का जनक माना जाता है, हालांकि संत निकोलस और जीसस के जन्म का सीधा संबंध नहीं रहा है फिर भी आज के समय में सांता क्लॉज क्रिसमस का अहम हिस्सा हैं। उनके बिना क्रिसमस अधूरा सा लगता है।

संत निकोलस का जन्म तीसरी सदी में जीसस की मौत के 280 साल बाद मायरा में हुआ। वे एक रईस परिवार से थे। वे जब छोटे थे तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया। बचपन से ही उनकी प्रभु यीशु में बहुत आस्था थी। वे बड़े होकर ईसाई धर्म के पादरी (पुजारी) और बाद में बिशप बने। उन्हें जरूरतमंदों और बच्चों को गिफ्ट्स देना बहुत अच्छा लगता था। वे अक्सर जरूरतमंदों और बच्चों को गिफ्ट्स देते थे। संत निकोलस अपने उपहार आधी रात को ही देते थे, क्योंकि उन्हें उपहार देते हुए नजर आना पसंद नहीं था।

ऐसी मान्यता है कि  जब महापुरुष ईसा का जन्म हुआ तो देवता उनके माता-पिता को बधाई देने आए। देवताओं ने एक सदाबहार फर को सितारों से सजाया। मान्यता है कि उसी दिन से हर साल सदाबहार फर के पेड़ को क्रिसमस ट्री प्रतीक के रूप में सजाया जाता है। इसे सजाने की परंपरा जर्मनी में दसवीं शताब्दी के बीच शुरू हुई और इसकी शुरुआत करने वाला पहला व्यक्ति बोनिफेंस टुयो नामक एक अंग्रेज धर्मप्रचारक था।
इंग्लैंड में 1841 में राजकुमार पिंटो एलबर्ट ने विंजर कासल में क्रिसमस ट्री को सजावाया था। उसने पेड़ के ऊपर एक देवता की दोनों भुजाएं फैलाए हुए मूर्ति भी लगवाई, जिसे काफी सराहा गया। क्रिसमस ट्री पर प्रतिमा लगाने की शुरुआत तभी से हुई। पिंटो एलबर्ट के बाद क्रिसमस ट्री को घर-घर पहुंचाने में मार्टिन लूथर का भी काफी हाथ रहा। क्रिसमस के दिन लूथर ने अपने घर वापस आते हुए आसमान को गौर से देखा तो पाया कि वृक्षों के ऊपर टिमटिमाते हुए तारे बड़े मनमोहक लग रहे हैं।
मार्टिन लूथर को तारों का वह दृश्य ऐसा भाया कि उस दृश्य को साकार करने के लिए वह पेड़ की डाल तोड़ कर घर ले आया। घर ले जाकर उसने उस डाल को रंगबिरंगी पन्नियों, कांच एवं अन्य धातु के टुकड़ों, मोमबत्तियों आदि से खूब सजा कर घर के सदस्यों से तारों और वृक्षों के लुभावने प्राकृतिक दृश्य का वर्णन किया। वह सजा हुआ वृक्ष घर सदस्यों को इतना पसंद आया कि घर में हर क्रिसमस पर वृक्ष सजाने की परंपरा चल पड़ी।
जो लोग अंधेरे में चल रहे हैं उन्हें एक दिन ग्रेट लाइट मिलेगी। जो लोग अंधेरी जमीन में रहते हैं उनके ऊपर रोशनी जरूर पड़ेगी।

बाबल की इन पंक्तियों से साफ है कि यीशु...

धरती पर शांति की स्थापना करने के लिए आए थे। वो लोगों की जिंदगियों को रोशन करके उनके अंधेरे को दूर करते हैं। ढेर सारी खुशियों और सेलिब्रेशन को लेकर क्रिसमस का त्योहार आ गया है...ईसाई धर्म मानने वालों के मुताबिक क्रिसमस से रोशनी का आरंभ होता है.. उनके अनुसार जीसस का जन्म भविष्यवाणी करने के लिए नहीं बल्कि एक युग को प्रकाशमान करने के लिए हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि देवदूतों ने आकर लोगों को बताया था कि ये बच्चा (यीशु) पालनहार है जो सभी के दुख हरने के लिए आया है। अब सवाल उठता है कि आखिर ये जीसस कौन थे जिनके पास दैवीय शक्ति थी?

येरुसलेम में मैरी और जोसेफ के घर में एक चमत्कारिक बच्चे का जन्म हुआ था। जिन्हें कि भगवान के बेटे के तौर पर जाना जाता है। ईसाईयों का मानना है कि जीसस का जन्म रुहानी ताकतों की वजह से वर्जिन मैरी के घर हुआ था और वो बचपन से ही करिश्मा किया करते थे।
इस्लाम में जीसस को ईसा बताते हुए भगवान का एक महत्वपूर्ण पैगंबर बताया गया है। इतिहासकारों ने माना है कि जीसस सच में एक समय धरती पर रहे होंगे। उन्होंने जो भी विचार दिए वो सभी जबानी थे। जिन्हें बाद में जॉन ने लिखकर एक किताब की शक्ल दी। जीसस की मौत के बाद उनके फॉलोवर्स का मानना था कि वो दोबारा जन्म लेंगे और उनके द्वारा स्थापित किए गए समाज को क्रिश्चियन चर्च का नाम दिया गया। हस साल 25 दिसंबर को उनका जन्मदिन पूरी दुनिया में धूमधाम से मनाया जाता है। इसी दिन को क्रिसमस कहते हैं। उन्हें क्रूज पर जिस दिन लटकाया गया था उसे गुड फ्राइडे के तौर पर मनाया जाता है। वहीं उनके पुनर्जन्म को ईस्टर कहते हैं।
यूं तो क्रिसमस सेलिब्रेट करने का सभी का अपना-अपना तरीका है. लेकिन अमूमन सभी लोग घर में क्रिसमस ट्री लाकर उसे गिफ्ट्स और लाइस से सजाते हैं। रात में स्पेशल भोजन तैयार किया जाता है। परिवार और दोस्त एक-दूसरे को गिफ्ट देते हैं। इसी दिन सांता क्लॉज आता है जो बच्चों को उन्हें उनका पसंदीदा गिफ्ट देता है। इसी वजह से बच्चों को सांता का बेसब्री से इंतजार होता है। हकीकत में क्रिसमस का मतलब चर्च में स्पेशल सर्विस होता है ताकि यीशु मसीहा के जन्म को सेलिब्रेट किया जा सके। इसके जरिए आपस में खुशियां बांटी जाती हैं। यह प्यार, मोहब्बत, शांति और भाईचारे का त्योहार है।

पुड्डुचेरी

अगर आप ऐसी जगह की तलाश में हैं, जहां शांतिपूर्ण तरीके से क्रिसमस का जश्न मना सकें तो फिर आपके लिए पुड्डुचेरी (पांडिचेरी) सबसे बेहतर विकल्प है। यह बेहद खूबसूरत जगह है और गोवा की तरह यहां भी रोमन कैथलिकों अच्छी-खासी आबादी है, जो बेहद उत्साह व आनंद के साथ क्रिसमस मनाते हैं। वहीं यहां के ऐतिहासिक चर्च दिल को सुकून पहुंचाते हैं। यहां का सेंट एंड्रूस चर्च साल 1745 में बना था तो इम्मेकुलेट कन्सेप्शन कैथेड्रल चर्च साल 1791 में। ऐसे कई पुराने चर्च पुड्डुचेरी में आज भी हैं।

दमन-दीव

भारत के सात केंद्र शासित प्रदेशों में से एक दमन-दीव पर पुर्तगालियों का जबरदस्त प्रभाव देखने को मिलता है और यही इस जगह को बेहद खास बना देता है। पूरे साल शांत रहने वाला दमन-दीव क्रिसमस पर गुलजार हो जाता है। हर एक चर्च को कलरफुल आर्टिफिशियल लाइटों से सजा दिया जाता है। वहीं पुर्तगाली डांस यहां के मुख्य आकर्षण का केंद्र होता है। यहां आकर चर्च ऑफ बोम जीसस, जैन मंदिर और देवका बीच जरूर घूमें।

शिलॉ

अगर आप किसी हिल स्टेशन पर क्रिसमस मनाना चाहते हैं तो शिलॉन्ग आपका इंतजार कर रहा है। इसे अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के लिए जाना जाता है। यहां के झरने, बगीचे इतने खूबसूरत हैं कि एक बार देख लेने के बाद आंखें हटाना मुश्किल हो सकता है। मगर ऐसा ही एहसास क्रिसमस के समय भी होता है, क्योंकि यहां भी यह फेस्टिवल धूमधाम से मनाया जाता है। वहीं क्रिसमस के आसपास यहां कैरल की धून अक्सर सुनने को मिल जाती है। यहां आकर नोह्कलिकई फॉल्स और उमीअम लेक जरूर देखें।

केरल

भारत में क्रिसमस मनाने के लिए केरल भी मशहूर जगहों में शामिल है। यहां कई ऐतिहासिक चर्च हैं, क्रिसमस के दौरान सभी सड़कें दुल्हन की तरह जगमगाने लगती हैं, वहीं चर्च पूरी रात खुले रहते हैं। लोग एक साथ एकत्रित होते हैं और सुबह तक प्रार्थना गीत गाते हैं। इसके अलावा कई होटल क्रिसमस के मौके पर खास कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
इन जगहों के अलावा आप कोलकाता,चेन्नई,मुंबई,मसूरी या फिर उत्तर-भारत में कहीं का भी रुख कर सकते हैं और इस क्रिसमस को जीवन भर के लिए यादगार बना सकते हैं।



तुम मुझे यूं भुला न पाओगे'


BIRTHDAY SPECIAL: 'तुम मुझे यूं भुला न पाओगे' रफी का 92 वां जन्मदिन





 आज के दिन पूरा देश मोहम्मद रफी का जन्मदिन मनाता रहा है। अपने गानों से सबके दिलों में जगह बनाने वाले मोहम्मद रफी को इस मौके पर गाना सुनते ही के गाए गीत 'तुम मुझे यूं भुला न पाओगे' वाकई इस आवाज को कोई नहीं भुला सकता. ये वो आवाज है जिसने सबके दिलो-दिमाग पर अपनी एक खास जगह बनाई है. ये आवाज है. मोहम्मद रफी की भारतीय सिनेमा के वो गायक की. जिन्होंने अपनी सुरीली आवाज से सबका मन मोह लिया. उनके गाए गीतों में आज भी वही ताजापन है.

रफी साहब का जन्म 24 दिसंबर, 1924 को अमृतसर के पास कोटला सुल्तान सिंह गांव में हुआ था लेकिन जब रफी छोटे थे, तभी उनका परिवार लाहौर से अमृतसर आ गया था.

संगीतकार नौशाद ने उन्हें फिल्म 'पहले आप' में गाने का मौका दिया। साल 1946 में नौशाद के संगीत से सजी फिल्म 'अनमोल घड़ी'  के गीत 'तेरा खिलौना टूटा' से रफी को पहली बार प्रसिद्धि मिली.'शहीद', 'मेला', और 'दुलारी' के लिए भी रफी के गाए गीत खूब मशहूर हुए लेकिन 'बैजू बावरा' के गीतों ने रफी को मुख्यधारा के गायकों में लाकर खड़ा कर दिया.
रफी को उनकी बेहतरीन गायकी के लिए छह बार सर्वश्रेष्ठ गायक के रूप में फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया. इसके अलावा साल 1965 में रफी पदमश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किये गये.

मोहम्मद रफी, बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के बहुत बड़े प्रशंसक थे। साल 1980 में प्रदर्शित फिल्म नसीबमें रफी को अमिताभ के साथ युगल गीत चल चल मेरे भाईगाने का मौका मिला. अमिताभ के साथ इस गीत को गाने के बाद रफी बेहद खुश हुये थे। बताया जाता है कि 30 जुलाई 1980 को आस पासफिल्म के गाने शाम क्यू उदास है दोस्तको पूरा करने के बाद जब रफी ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल से कहा कि शूड आई लीवजिसे सुनकर लक्ष्मीकांत प्यारे लाल भौचक्के रह गए, क्योंकि इससे पहले रफी ने उनसे कभी इस तरह की बात नही की थी। अगले दिन 31 जुलाई 1980 को रफी को दिल का दौरा पड़ा और वो इस दुनिया को अपने सुरीले गानों और अपनी यादों के साथ छोड़कर चले गये।


Friday, 16 December 2016

निर्भया कांड की चौथी बरसी आज, 4 साल बाद भी दिलवालों की दिल्ली जस की तस


निर्भया कांड की चौथी बरसी,4 साल बाद भी दिलवालों की दिल्ली जस की तस 


हर सवाल के जवाब होते है लेकिन कुछ सवाल के जवाब सिर्फ सवाल बन कर रह जाती है. जी हां आज 16 दिसंबर निर्भया कांड के चार साल पूरे हो चुके हैं. दरअसल, सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए भले ही लाख दावे कर रही हो लेकिन राजधानी से लेकर यूपी तक रेप की वारदात जस की तस बनी हुई है. आए दिन महिलाओं के साथ हो रहे छेड़छाड़ औऱ रेप जैसी घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही है. 

ताजा मामला फ़िरोज़ाबाद के रानी नगर का है. जहां 5 साल की बच्ची मासून से पड़ोस के ही युवक ने हवस का शिकार बनाया.पीड़ित परिजनों का कहना है कि आरोपी युवक ने उनकी बेटी को टीवी देखने के बहाने बुलाया और उसके हाथ पैर बांध कर मुह में कपड़ा डाल कर उसे अपनी हवस का शिकार बना डाला. मासूम की चीख पुकार पर लोग जमा हो गए. लेकिन आरोपी मौके से भागने में कामयाब  हो गया. उधर मौके पर पहुंची पुलिस जांच में जुट गई है.

दरअसल एक 20 साल की युवती के साथ रेप का मामला सामने आया है. पीड़िता के साथ कार में रेप किया गया. पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर वारदात में प्रयोग की गई कार को बरामद कर लिया है. पुलिस के मुताबिक, पीड़ित युवती नोएडा की रहने वाली है. बुधवार को नौकरी की तलाश में वह दिल्ली आई थी. दिन भर नौकरी की तलाश के बाद रात तकरीबन 9 बजे वह घर जाने के लिए एम्स के पास बस का इंतजार कर रही थी, तभी एक लग्जरी कार युवती के पास आकर रुकी. कार चालक ने युवती को रात होने का हवाला देते हुए नोएडा छोड़ने की बात कही.

घर जल्दी पहुंचने की बात सोचकर युवती कार में बैठ गई. जिसके बाद आरोपी कार चालक उसे काफी देर तक दिल्ली की सड़कों पर घुमाता रहा. तकरीबन 11 बजे आरोपी ने मोतीबाग के पास कार रोकी और युवती के साथ छेड़छाड़ करने लगा. आरोपी ने युवती को डरा-धमकाकर उसके साथ  रेप किया. किसी तरह पीड़िता वहां से भागने में कामयाब रही.

ये दो घटनाएं सिर्फ यह बताने के लिए काफी है कि निर्भया केस के बाद जो भी दावे किये गये हों. यूपी में हालात नहीं बदले हैं.जिस तरह निर्भया केस ने दुनिया भर का ध्यान दिल्ली की तरफ खींचा था.ठीक उसी तरह दो माह पहले उत्तर प्रदेश कें बुलंदशहर में नेशनल हाइवे पर मां-बेटी के साथ हुए गैंगरेप के मामले ने देशभर का ध्यान अपनी ओर खींचा था. तब भी अखिलेश सरकार ने बड़े बड़े वादे किये.

उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में यहां लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है.जबकि जानकारों का कहना है कि ये आंकड़ें  रेप के वास्तविक आंकड़े इससे कहीं अधिक हो सकते हैं. यदि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो-2014 की रिपोर्ट्स से मिले राष्ट्रीय आंकड़ों की उत्तर प्रदेश के आंकड़ों से तुलना करें, तो पता चलेगा कि यूपी में अपराध का औसत देशभर के अपराध के औसत से अधिक है.

                    
                    यूपी क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के ताजा आंकड़ें


         साल 2014-2015 के बीच रेप मामलों में 161 फीसदी की बढ़ोतरी

         साल 2014 में रेप के 3 हजार 4 सौ 67 मामले दर्ज
          
         ऐसे ही साल 2015 में रेप के 9 हजार 75 मामले दर्ज
         
         रेप की कोशिश के मामलों में भी 30 फीसदी की बढ़ोतरी


16 दिसंबर, 2012 को हुआ था निर्भया कांड

गौरतलब है कि 4 साल पहले, आज की ही तारीख यानी 16 दिसंबर, 2012 को निर्भया के साथ गैंगरेप हुआ था. चलती बस में पांच लोगों ने एक मेडिकल स्टूडेंट के साथ दरिंदगी की सारी इंतेहा पार कर दी थी. जख्मी हालत में उसको अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां कई दिनों तक वो बिस्तर पर पड़ी जिंदगी और मौत की जंग लड़ती रही. आखिरकार 29 दिसंबर, को निर्भया जिंदगी की जंग हार गई. निर्भया की मौत हो गई.

4 साल बाद भी दिलवालों की दिल्ली जस की तस

राजधानी की सत्ता बदल गई, हुक्मरान बदल गए लेकिन महिलाओं को लेकर दिल्ली का नजरिया आज भी वहीं है. 4 साल बीत जाने के बाद आज भी ये दिल्ली घूरती है, महिलाओं का शोषण करती है और महिला अधिकारों और महिला सशक्तिकरण जैसे शब्दों की आबरु को तार-तार करती है. बहरहाल उम्मीद है एक न एक दिन दिल्ली के हालात जरुर बदलेंगे, देश के हालात बदलेंगे और फिर बलात्कार जैसी घिनौनी बीमारी से जकड़ा हमारा देश एक दिन जरूर आजाद हो पाएगा.