नवरात्री के द्वितीय स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा आज
आज नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी के स्वरूप की पूजा की जाती है. अनंत कोटि फल प्रदान करने वाली मां ब्रहचारिणी को त्याग और तपस्या की देवी माना जाता है. शास्त्रों में मां ब्रह्मचारिणी को वेद-शास्त्रों और ज्ञान की ज्ञाता माना गया है.
माँ ब्रह्मचारिणी उपासना मंत्र: दधाना कपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू!!
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा!!
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा!!
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत भव्य और तेजयुक्त है. मां ब्रह्मचारिणी के धवल वस्त्र हैं. उनके दाएं हाथ में अष्टदल की जपमाला और बाएं हाथ में कमंडल सुशोभित है.
शास्त्रों के मुताबिक भगवती ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए एक हजार वर्षों तक फलों का सेवन कर तपस्या की थी. इसके पश्चात तीन हजार वर्षों तक पेड़ों की पत्तियां खाकर तपस्या की. इतनी कठोर तपस्या के बाद इन्हें ब्रह्मचारिणी स्वरूप प्राप्त हुआ. साधक और योगी इस दिन अपने मन को भगवती मां के श्री चरणों मे एकाग्रचित करके स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और मां की कृपा प्राप्त करते हैं. ब्रह्म का अर्थ है, तपस्या, तप का आचरण करने वाली भगवती, जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया है.
श्रद्धालु भक्त और साधक अनेक प्रकार से भगवती की अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए व्रत-अनुष्ठान व साधना करते हैं. कुंडलिनी जागरण के साधक इस दिन स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करने की साधना करते हैं. मां दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है. मां ब्रहमचारिणी की उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है.
जीवन के कठिन संघषों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता. मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है. इस दिन साधक का मन 'स्वाधिष्ठान "चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है.
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